झरना
बहना ही जीवन का नाम है----
रविवार, 30 अक्तूबर 2011
झरना: खो गया -----
झरना: खो गया -----: निकल रहा था अपने घर से दिल में एक अजब की चाह थी बल्लियाँ उछल रहा था किसी कोने में सोचा आज मिलूँगा उससे , कह दुँगा वो सब जो सोच रखा ...
खो गया -----
निकल रहा था अपने घर से
दिल में एक अजब की चाह थी
बल्लियाँ उछल रहा था किसी कोने में
सोचा आज मिलूँगा उससे , कह दुँगा वो सब जो सोच रखा है
सारी ख्वाईशें , सारे अरमान पूरे होंगे ,
आईने में खुद को निहारा एक बार
पर यह क्या ? मुझे गुस्सा आ गया
खुद पर नही , अपने पैदा करने वाले पर
एक ढंग के कपडे भी नही दे सकते ----
क्यों बेटा कहकर पुकारते हैं ---- ऐसे माँ -बाप से भला तो अनाथ बेहतर होता --
और ना जाने क्या-क्या बडबडाता मै निकल गया
अच्छा - खासा मूड था , पर बदल गया
पार्क में इंतजार कर रहा था मै
पर अपने कपडों को देख -देख बिफर रहा था मै
बाबूजी १० रुपये देना , माँ के लिये दवा लाना है
मै झिडकता पर बच्चे का हाल देखकर गुस्सा
फुर्र हो गया ------
१० रुपये उसे थमा , मै कही खो गया ---
बुधवार, 28 सितंबर 2011
राहुल राज की पुण्यतिथि पर
थी धूल से धूसरित धरा
थी क्षीण होती रश्मियाँ
थी प्रचंड आग में जली
राष्ट्रवाद की बेलियाँ
था राष्ट्र तब दरक रहा
स्वयं की फूलती थी बेलियाँ
क्षेत्रवाद के किले में कैद होती बलियाँ
रो रहा था भगत
ना थम रही थी हिचकियाँ
एक कोने में पडी थी
आजाद की वो गोलियाँ
ना गर्म खूँ था यहाँ अब
ना खीचती थी पेशियाँ
माँ भारती के मौत पे
हो रही थी अठखेलियाँ
स्वार्थ के इस खेल में
था एक बाकां जवां
जो राष्ट्र की अवधारणा का
नव-नवीन इतिहास बना
स्वयं टूटने के दंश से
वह हमें बचा गया
रक्त की स्याही लगाकर
वह हमें जगा गया
थी वो राष्ट्रभक्ति की मिसाल
या एक राष्ट्र पर था वो सवाल
पूछता है हृदय सदा
पर अभी भी डरा-डरा
है धूल से धूसरित धरा
है क्षीण होती रश्मियाँ
है प्रचंड आग में जली
राष्ट्रवाद की बेलियाँ
थी क्षीण होती रश्मियाँ
थी प्रचंड आग में जली
राष्ट्रवाद की बेलियाँ
था राष्ट्र तब दरक रहा
स्वयं की फूलती थी बेलियाँ
क्षेत्रवाद के किले में कैद होती बलियाँ
रो रहा था भगत
ना थम रही थी हिचकियाँ
एक कोने में पडी थी
आजाद की वो गोलियाँ
ना गर्म खूँ था यहाँ अब
ना खीचती थी पेशियाँ
माँ भारती के मौत पे
हो रही थी अठखेलियाँ
स्वार्थ के इस खेल में
था एक बाकां जवां
जो राष्ट्र की अवधारणा का
नव-नवीन इतिहास बना
स्वयं टूटने के दंश से
वह हमें बचा गया
रक्त की स्याही लगाकर
वह हमें जगा गया
थी वो राष्ट्रभक्ति की मिसाल
या एक राष्ट्र पर था वो सवाल
पूछता है हृदय सदा
पर अभी भी डरा-डरा
है धूल से धूसरित धरा
है क्षीण होती रश्मियाँ
है प्रचंड आग में जली
राष्ट्रवाद की बेलियाँ
रविवार, 4 सितंबर 2011
भगवान मुझे इक साली दे
भगवान मुझे इक साली दे
गोरी दे या काली दे
भगवान मुझे इक साली दे
सीधी दे , नखरेवाली दे
या गरम चाय की प्याली दे
भगवान मुझे इक साली दे
ससुराल मै जब भी जाता हुँ
गुमसुम ही बैठा रहता हुँ
ना करे कोई मिन्नते , ना ही कोई गाली दे
भगवान मुझे इक साली दे
जब मिलते हैं दोस्त-यार
होती हैं महफिलें तैयार
करते हैं वो बाते उस पल
साली जैसी दिलवाली के
भगवान मुझे इक साली दे
हे। प्रभु । ईश्वर मेरे
कष्ट मुझे दे-दे बहुतेरे
पर इस सूखे संसार में
मुझे साली की भरी थाली दे
भगवान मुझे इक साली दे ।
रविवार, 28 अगस्त 2011
मोहब्बत भरी जिंदगी
रश्क हे जिन्दगी को बनाया किसने
महकते हुये आंचल से सजाया किसने
हरेक कदम पे जिन्दगी मे खुशियाँ बिखेर दी
पर गम के सायों से रुलाया किसने
जिंदगी में मोहब्बत भरो खुदा - ए - दीन की तरह
जिंदगी में फितरत भरो फिल्म के सीन की तरह
जिंदगी को जिओगे ऐसे तो मज़ा आयेगा
बाद में रुसखत करो तमाशेबीन की तरह
जिंदगी के लम्हों को यूँ दिल में बसा लो
आसमाँ से मानो तुम सुरमा चुरा लो
वक्त की नज़ाकत को समझकर यारों
जिंदगी को मोहब्बत की दुनिया बना लो
आते हैं सपनो मे बख्शीशें हज़ार
होती है अक्सर हसीनो से आँखे चार
सपने तो टूटते हैं अक्सर यारों
सपनो को जिंदगी का मकसद बना लो
तुम पाओगे की जिंदगी जहीन हो गयी
खुशी के आईने में आमीन हो गयी
गम की आहट ना आयेगी तेरे दर पे कभी
हर मोड पे हर लम्हा रंगीन हो गयी ।
महकते हुये आंचल से सजाया किसने
हरेक कदम पे जिन्दगी मे खुशियाँ बिखेर दी
पर गम के सायों से रुलाया किसने
जिंदगी में मोहब्बत भरो खुदा - ए - दीन की तरह
जिंदगी में फितरत भरो फिल्म के सीन की तरह
जिंदगी को जिओगे ऐसे तो मज़ा आयेगा
बाद में रुसखत करो तमाशेबीन की तरह
जिंदगी के लम्हों को यूँ दिल में बसा लो
आसमाँ से मानो तुम सुरमा चुरा लो
वक्त की नज़ाकत को समझकर यारों
जिंदगी को मोहब्बत की दुनिया बना लो
आते हैं सपनो मे बख्शीशें हज़ार
होती है अक्सर हसीनो से आँखे चार
सपने तो टूटते हैं अक्सर यारों
सपनो को जिंदगी का मकसद बना लो
तुम पाओगे की जिंदगी जहीन हो गयी
खुशी के आईने में आमीन हो गयी
गम की आहट ना आयेगी तेरे दर पे कभी
हर मोड पे हर लम्हा रंगीन हो गयी ।
शुक्रवार, 12 अगस्त 2011
देख तुझे ओ । प्रियंका --------
व्यथित हृदय के मरूक्षेत्र में जन्मा एक
बीज प्रेम का
हर्षित हुई प्रकृति धरा तब
सौभाग्य था मानव जीवन का
चंचल मन स्वप्न में लीन हुआ
चहक उठा अंग-अंग तन का
देख तुझे ओ । प्रियंका
नयनों के सुरमयी क्षेत्र कामुकता का
प्रवाह हुआ
हृदय के झंकृत तारों में व्याकुलता का
आभास हुआ
सुगंधित हो उठी सांसे
ढीला पड गया बंधन मन का
देख तुझे ओ । प्रियंका
बीज प्रेम का
हर्षित हुई प्रकृति धरा तब
सौभाग्य था मानव जीवन का
चंचल मन स्वप्न में लीन हुआ
चहक उठा अंग-अंग तन का
देख तुझे ओ । प्रियंका
नयनों के सुरमयी क्षेत्र कामुकता का
प्रवाह हुआ
हृदय के झंकृत तारों में व्याकुलता का
आभास हुआ
सुगंधित हो उठी सांसे
ढीला पड गया बंधन मन का
देख तुझे ओ । प्रियंका
व्यथित हृदय में तुम प्रेम
आभास हो
अमावस्या में तुम प्रकाश हो
मरणशय्या पर अंतिम सांस हो
चुभता है एक शुल हमेशा
कब आयेगी घडी मिलन का
देख तुझे ओ । प्रियंका
ऐ । नौजवानों
है देश आज मंझधार में ---
है काल में कलवित हुआ
भ्रष्ट शासन के विपद के
आङ में कुंठित हुआ
निज जहाँ है ये हमारा
प्राण प्यारा था सदा
चंद लोभियों के दहकती
गाँठ में उलझा हुआ
शायद भ्रम था हमारा
स्वयं शासन सुयोग का
पर बन गया सपना हमारा
वस्तु - दानवों के भोग का
बेच डाला इस जमीं को
चंद डालरों के मोल में
कर डाला सौदा हमारा
शादी की अपनी ढोल में
भर उठा उनका खजाना
पर हम दहलते रहे
कभी बारुद की ढेर पर तो
कभी जठराग्नि में जलते रहे
जाग जाओ ऐ। दीवानो
इस राष्ट्र के ऐ । नौजवानो
नव-विहान , नवलय का
वक्त आज आन पडा
है देश आज मंझधार में
बस तुम्हे पुकार रहा ।
मनीष कुमार वत्स "माही"
है काल में कलवित हुआ
भ्रष्ट शासन के विपद के
आङ में कुंठित हुआ
निज जहाँ है ये हमारा
प्राण प्यारा था सदा
चंद लोभियों के दहकती
गाँठ में उलझा हुआ
शायद भ्रम था हमारा
स्वयं शासन सुयोग का
पर बन गया सपना हमारा
वस्तु - दानवों के भोग का
बेच डाला इस जमीं को
चंद डालरों के मोल में
कर डाला सौदा हमारा
शादी की अपनी ढोल में
भर उठा उनका खजाना
पर हम दहलते रहे
कभी बारुद की ढेर पर तो
कभी जठराग्नि में जलते रहे
जाग जाओ ऐ। दीवानो
इस राष्ट्र के ऐ । नौजवानो
नव-विहान , नवलय का
वक्त आज आन पडा
है देश आज मंझधार में
बस तुम्हे पुकार रहा ।
मनीष कुमार वत्स "माही"
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