थी धूल से धूसरित धरा
थी क्षीण होती रश्मियाँ
थी प्रचंड आग में जली
राष्ट्रवाद की बेलियाँ
था राष्ट्र तब दरक रहा
स्वयं की फूलती थी बेलियाँ
क्षेत्रवाद के किले में कैद होती बलियाँ
रो रहा था भगत
ना थम रही थी हिचकियाँ
एक कोने में पडी थी
आजाद की वो गोलियाँ
ना गर्म खूँ था यहाँ अब
ना खीचती थी पेशियाँ
माँ भारती के मौत पे
हो रही थी अठखेलियाँ
स्वार्थ के इस खेल में
था एक बाकां जवां
जो राष्ट्र की अवधारणा का
नव-नवीन इतिहास बना
स्वयं टूटने के दंश से
वह हमें बचा गया
रक्त की स्याही लगाकर
वह हमें जगा गया
थी वो राष्ट्रभक्ति की मिसाल
या एक राष्ट्र पर था वो सवाल
पूछता है हृदय सदा
पर अभी भी डरा-डरा
है धूल से धूसरित धरा
है क्षीण होती रश्मियाँ
है प्रचंड आग में जली
राष्ट्रवाद की बेलियाँ
थी क्षीण होती रश्मियाँ
थी प्रचंड आग में जली
राष्ट्रवाद की बेलियाँ
था राष्ट्र तब दरक रहा
स्वयं की फूलती थी बेलियाँ
क्षेत्रवाद के किले में कैद होती बलियाँ
रो रहा था भगत
ना थम रही थी हिचकियाँ
एक कोने में पडी थी
आजाद की वो गोलियाँ
ना गर्म खूँ था यहाँ अब
ना खीचती थी पेशियाँ
माँ भारती के मौत पे
हो रही थी अठखेलियाँ
स्वार्थ के इस खेल में
था एक बाकां जवां
जो राष्ट्र की अवधारणा का
नव-नवीन इतिहास बना
स्वयं टूटने के दंश से
वह हमें बचा गया
रक्त की स्याही लगाकर
वह हमें जगा गया
थी वो राष्ट्रभक्ति की मिसाल
या एक राष्ट्र पर था वो सवाल
पूछता है हृदय सदा
पर अभी भी डरा-डरा
है धूल से धूसरित धरा
है क्षीण होती रश्मियाँ
है प्रचंड आग में जली
राष्ट्रवाद की बेलियाँ
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