भीष्म द्रोण घ्रित्रास्त्र युधिस्ठिर
हो गयी सबकी बुद्धि स्थिर
मानवों की भरी सभा में
दानवता का सूत्रपात हुआ
नारी तुम पे आघात हुआ
अपनी - अपनी स्वार्थ थी सबकी
प्रतिष्ठा पे आंच थी सबकी
राजमोह की अन्धता में
ये कैसा ? कलंकित पाप हुआ
नारी तुम पे आघात हुआ
दाव लगनी थी राजपाट की
लग गयी दाव नारी जाति की
सन्न रह गए सारे दरबारी
हस्तिनापुर पे वज्रपात हुआ
नारी तुम पे आघात हुआ
कर जोड़ रो रही थी पांचाली
बिखरे थे बालों की डाली
चेहरा सुख गया था उसका
काले पड़ गए गालो की लाली
ये देख सरे महापुरुषों का
न उन्मत्त
जज्बात हुआ
नारी तुम पे आघात हुआ
बुद्धि फिर गयी दुर्योधन की
चित्त का भी हुआ विनाश
आदेश दे दुशाशन को
कर उठा परिहास
लज्जा छीन लो द्रोपदी का
कभी इससे मेरा उपहास हुआ
नारी तुम पे आघात हुआ
शीश झुक गए पांड्वो के तब
चीत्कार उठी सारी सभासद
महाभारत के शूरवीरों की
धरी रह गयी सारी ताकत
अर्जुन के गांडीव से न
बाणों का बरसात हुआ
नारी तुम पे आघात हुआ
हे! धर्मराज , मेरे अर्जुन प्यारे
गदा निपुण ओ भीम हमारे
लज्जा मेरी छीन रही है
कहाँ हो नकुल सहदेव दुलारे
हाथ जोड़ पुकारती अबला पर
न इन वीरों का दयामात्र हुआ
नारी तुम पे आघात हुआ
देख स्वयं की दारुण दशा
ह्रदय द्रोपदी का रो उठा
पुकार उठी सर्वप्रिय मोहन को
मन ही मन कह उठी व्यथा
सुनकर द्रोपदी का संताप
प्रभु का सभा में रास हुआ
नारी तुम पे आघात हुआ
दिग्गज दोल उठा मग में
अचंभित हो उठे कौरव
भीष्म द्रोण कृपाचार्य अचंभित
देख नारी की शक्ति सौरभ
प्रभु कृपा से पुनः एक बार
दानवों का मद ह्रास हुआ
नारी तुम पे आघात हुआ
माही सिंह (मनीष कुमार वत्स )
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