शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

रुठा - सूना संसार


रूठा - सूना संसार है ।
रूठा - सूना संसार है
रामकृष्ण की तपोभूमि यह
कर्मभूमि है गाँधी की
जो धरा सदियों से सुन्दर
राह में है बर्बादी की
रवि का तेज मंद पड़ गया
पग - पग पर अंधकार है
रूठा - सूना संसार है
धूमिल पड़ गयी माँ की ममता
सपूत कपूत हुए जग में
रक्त - पिपासे बन गए भाई
कांटे बोते परस्पर पथ में
भाई का भाई से जग में ये कैसा प्यार है
रूठा -सूना संसार है.
कितनी मांगे सूनी हो गयी
कितने गोद हुए खाली
तकती है राहे बहने
हाथो में ले राखी की थाली
संकट में है जीवन धरा पर
जकड रहा आतंकवाद है
रूठा -सूना संसार है
प्रबल हो रही लिप्साओ ने
स्थिरता पे तुषारापात किया
आगे रहने की होड़ ने
मानवता पर आघात किया
जठराग्नि में जब्त मानव अब
कण -कण को मोहताज है
रूठा - सूना संसार है
उड़ गयी अमन -शांति जहाँ से
बस रह गए गोले - बारूद यहाँ पे
सोने - चाँदी की बात कहाँ अब
यहाँ सुई को तकरार है
रूठा - सूना संसार है
फह्रेगी पताका चैन - ओ -अमन की
आज से सुन्दर कल होगा
दिल दीप जलाता है आशा का
हर पल करता मनुहार है
रूठा -सूना संसार है
हो जायेगी सुन्दर धरा
ना होगा कण -कण पे पहरा
ह्रदय मिलेंगे अपनो के तब
सारी दुनिया घर-बार है
फिर क्यों रूठा संसार है
फिर क्यों सूना संसार है ।

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