शनिवार, 30 जुलाई 2011

झुमरी काकी ‍१२५ साल की-----------

दुबला-पतला शरीर, चेहरा झुर्रियों से भरा हुआ ,चलती है ऐसे झुककर मानो पुरे संसार का बोझ उसके कांधे पर रखा है , पर आवाज बडा ही गर्वीला और कडकदार , अभी परसों ही रामजीतन के बेटे को डाँट रही थी , डाँट तो उसे रही थी परन्तु हलक सुनने वालों के सूख रहे थे , कितनी उमर हो गयी होगी इनकी मैने वहाँ खडे एक रमेसर चचा से पुछा , बेटा हमनी के कि पता , ई तो तोर बबे बताय सको हखुँ (मुझे क्या पता ये तो तुम्हारे दादा ही बता सकते हैं) , शाम को जब सब लोग दलान में बैठे थे , मुझे रहा नही गया  झुमरी काकी के पडताल का इससे अच्छा मौका मुझे नही मिलने वाला था , सो पूछ दिया कि झुमरी काकी का क्या उमर हुआ होगा , यही ७० साल , पापा तपाक से बोले , नही ९० साल तो हुआ ही होगा राघो चचा बोले ,अरे तुम लोग को कुछ पता भी है या ऐसे ही बोलते जा रहे हो, अबकी दादा बोले थे , झुमरी का जनम तब हुआ था जब मै पैदा भी नही हुआ था , मेरे पिताजी बताते थे कि जब बंगाल बँटा था उसके ५ साल पहले ही वह भिखुआ की जोरु बनकर गाँव में आयी थी  , यानि लगभग ‍१२५ साल से भी उपर की है वो मैने सोचा ----अच्छा दादा जी ये भिखुआ कौन था और कब मरा --- मेरी दिलचस्पी बढ रही थी , भिखुआ हमारा जन था ,वह हमारा हरेक काम करता था , ऊसका बेटा था जगेसर जो अभी अपना हल जोतता है, भिखुआ शादी के ‍१५ साल बाद ही मर गया था , मैने भी उसे नही देखा है , अच्छा दादा जी ये झुमरी काकी तो बंजारिन है , इसके पास जमीन जायदाद भी नही , सरकार इसके लिये कुछ नही करती ,हाँ कम से कम इसे वृद्धा पेंशन तो मिलनी ही चाहिये, बेटा जितना तुम सोचते हो , जितना कानुन है उतना सब कुछ पुरा हो जाये तो सबकी जिन्दगी बन जाये ------- पर हकीकत में ऐसा नही होता --- सरकार की योजनायें बस कागजों तक ही सीमित रहती है---- मै सरकारी पैसों के दुरुपयोग और सरकारी  अफसरों के कर्तव्यहीनता और लोलुपता पर विचार करने लगा ----मुझे लगा कुछ तो करना चाहिये ------इस ‍१२५ साल की काकी के लिये जिसे शायद पेट भर अनाज मिलता हो------- शेष अगले भाग में---------