रविवार, 30 अक्तूबर 2011

झरना: खो गया -----

झरना: खो गया -----: निकल रहा था अपने घर से दिल में एक अजब की चाह थी बल्लियाँ उछल रहा था किसी कोने में सोचा आज मिलूँगा उससे , कह दुँगा वो सब जो सोच रखा ...

खो गया -----


निकल रहा था अपने घर से    
दिल में एक अजब की चाह थी
बल्लियाँ उछल रहा था किसी कोने में
सोचा आज मिलूँगा उससे , कह दुँगा वो सब जो सोच रखा है
सारी ख्वाईशें , सारे अरमान पूरे होंगे ,
आईने में खुद को निहारा एक बार
पर यह क्या ? मुझे गुस्सा आ गया
खुद पर नही , अपने पैदा करने वाले पर
एक ढंग के   कपडे भी नही दे सकते ----                                                                                                                        
क्यों बेटा कहकर पुकारते हैं ----                                                                                                                                ऐसे माँ -बाप  से भला तो अनाथ बेहतर होता --
और ना जाने क्या-क्या बडबडाता मै निकल गया
अच्छा - खासा मूड था , पर बदल गया
पार्क में इंतजार कर रहा था मै
पर अपने कपडों को देख -देख बिफर रहा था मै
बाबूजी ‍१० रुपये देना , माँ के लिये दवा लाना है
मै झिडकता पर बच्चे का हाल देखकर गुस्सा
फुर्र हो गया ------
‍१० रुपये उसे थमा , मै कही खो गया ---