वह बालों को धूप में नही सुखाती है
ना वह हँसती है, ना रोती है
ना जागती है ना सोती है
बस शून्य में निहारते हुये
वह ना जाने किस सोच में गुम रहती है
पर वह बालों को धूप में नही सुखाती है
उसका दमकता चेहरा विदीर्ण हो गया है
उसका सारा अरमान छिन्न-भिन्न हो गया है
वह बरबस आने- जाने वाले
पथिकों को निहारती है
आधी नींद में वह ना जाने किसको
पुकारती है
पर वह बालों को धूप में नही संवारती है
इतनी छोटी - सी उम्र में वह श्रिंगार नहीं करती है
बाकी सारी ज़िन्दगी उसे पहाड सी लगती है
ज़िस्म पे सफेद साडी उसके खूबसुरती को बिगाडती है
पर वह बालों को धूप में नही सवाँरती है
दर्द ही उसकी दवा है
हर किसी कि ज़ली - कटी
उसकी सज़ा है
सारी बंदिशों में रहते हुये भी
समाज की नज़रों में वह
वेवफा है
क्योंकि २५ की उम्र मे वह विधवा है
तभी तो वह समाज़ से खुद को डराती है और बालों को धूप मे नही सुखाती है
ना वह हँसती है, ना रोती है
ना जागती है ना सोती है
बस शून्य में निहारते हुये
वह ना जाने किस सोच में गुम रहती है
पर वह बालों को धूप में नही सुखाती है
उसका दमकता चेहरा विदीर्ण हो गया है
उसका सारा अरमान छिन्न-भिन्न हो गया है
वह बरबस आने- जाने वाले
पथिकों को निहारती है
आधी नींद में वह ना जाने किसको
पुकारती है
पर वह बालों को धूप में नही संवारती है
इतनी छोटी - सी उम्र में वह श्रिंगार नहीं करती है
बाकी सारी ज़िन्दगी उसे पहाड सी लगती है
ज़िस्म पे सफेद साडी उसके खूबसुरती को बिगाडती है
पर वह बालों को धूप में नही सवाँरती है
दर्द ही उसकी दवा है
हर किसी कि ज़ली - कटी
उसकी सज़ा है
सारी बंदिशों में रहते हुये भी
समाज की नज़रों में वह
वेवफा है
क्योंकि २५ की उम्र मे वह विधवा है
तभी तो वह समाज़ से खुद को डराती है और बालों को धूप मे नही सुखाती है