शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

जिसको खिलते देखा हैॉ

आदिकाल के उपवन से ही जिसको खिलते देखा है
निज भाग्य उदित हुये मानव के
जिसने हर रुप बदलते देखा है
कभी जननी , कभी पालनहारा
बहाकर धरा पे प्रेम की धारा
ह्रदय तरंगों को झंकृत कर
जीवन संगिनी बनते देखा है
आदिकाल के उपवन से ही जिसको खिलते देखा है।

जन्म लिया तो बेटी हुई
कहकर लोगों से ठेठी हुई
बह गये पिता के अश्रुधार
माँ की ममता को पँहुचा आघात
गमगीन हुये संसार में भी उसको हँसते देखा है
आदिकाल के उपवन से ही जिसको खिलते देखा है।

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