परिचय

बंदे को माही भी कहते हैं दोस्त प्यार से,‍१२वीं नवोदय विद्यालय से उत्तीर्ण करने के बाद दिल्ली आ गया,दिल्ली यूनिवर्सिटी का महत्व ही कुछ और है,रोज तो नही पर सप्ताह में तीन दिन तो जरुर कालेज जाता हुँ, पर नाम की उपस्थिति ,दिल तो अभी भी नवोदय विद्यालय में ही अटका हुआ है , उसी को सोता हुँ , उसी को पढता हुँ और तन्हाई में उसी को गुनगुना भी लेता हूँ, हालाँकि गाने का शौक नहीं हाँ कवितायें जरुर लिखता हुँ और रोज नोवेल लिखने का प्रण लेता हुँ पर दो-चार पन्ने लिखकर फाडने का मज़ा कुछ और ही है , आजकल अपनी जिन्दगी यानि नवोदय की तमाम मटरगश्तियों को पन्नो में उकेरने की कोशिश में हुँ ।घर जाने का बहुत मन करता है बिहार है ही इतना प्यारा पर जा नही पाता शायद अपनो से डर लगता है ------बस यही मेरी जिन्दगी है ---- पन्ने-पन्ने--पन्ने यही मेरा झरना है जिसमें डुबकी लगाते रहता हुँ ---------